उत्तराखण्ड

देहरादून का सबसे बड़ा अस्पताल लेकिन इलाज की फैसिलिटी मरीज को नहीं मिलती

दून अस्पताल कहने के लिए प्रदेश के प्रमुख चिकित्सालयों में शुमार जरूर है पर सरकार व शासन इससे मुंह फेरे बैठे हैं। न केवल दून बल्कि पहाड़ से भी मरीज यहां उपचार के लिए आते हैं, पर उनकी उम्मीद पर सरकारी सुस्ती ग्रहण लगा रही है। इसका पहला उदाहरण है सीटी स्कैन मशीन। मशीन पिछले सात माह से ठप है और मरीज बाहर से जांच करा रहे हैं। दूसरा है अस्पताल में स्टाफ की कमी। इस संबंध में अस्तपाल प्रशासन ने शासन को भी प्रस्ताव भेजा है लेकिन अस्पताल प्रशासन के कई अनुरोध के बाद भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

दून अस्पताल में न केवल शहर बल्कि पहाड़ व उत्तर प्रदेश -हिमाचल प्रदेश के सीमांत क्षेत्र से भी मरीज इलाज के लिए आते हैं। प्रतिदिन अस्पताल की ओपीडी करीब डेढ़ हजार तक रहती है। इन मरीजों को डॉक्टर कई तरह की जांच भी लिखते हैं। पर जांच के नाम पर मरीज की जेब कट रही है।

सीटी स्कैन मरीजों को बाहर से करवाना पड़ रहा है। अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन पिछले सात माह से ठप है। दून मेडिकल कॉलेज प्रशासन अपने स्तर पर नई मशीन की खरीद की प्रक्रिया पूरी कर चुका है, पर स्वीकृति की फाइल काफी वक्त से शासन में ही अटकी हुई है। बताया जा रहा है कि शासन स्तर पर सीटी स्कैन पीपीपी मोड पर देने पर विचार चल रहा है। जिस कारण मामला अटका हुआ है। बहरहाल कारण जो भी हो इसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है।

निजी सेंटरों पर दे रहे दोगुना रेट 

दून अस्पताल में सिर का सीटी स्कैन 1418 रुपये, जबकि पूरे शरीर का सीटी स्कैन 2126 रुपये में होता है। बीपीएल मरीजों की जांच मुफ्त है। वहीं, निजी सेंटर में सिर का सीटी स्कैन 2500 और पूरे शरीर का पांच से छह हजार रुपये में होता है। ऐसे में अस्पताल में जांच न होने से मरीजों को काफी ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ रही है। सबसे ज्यादा दिक्कत बीपीएल मरीजों को है। जिन्हें जांच के लिए पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।

पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी 

दून अस्पताल व दून महिला अस्पताल को एकीकृत कर मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया गया तो लगा कि सुविधाएं बढ़ेंगी पर मरीज किसी न किसी कारण दिक्कत झेल रहे हैं। इनमें एक वजह पैरामेडिकल स्टाफ की कमी भी है।

मानकों की बात करें तो स्टाफ आधा भी नहीं है। इससे कई स्तर पर कठिनाईयां आ रही हैं। 24 घंटे पैथोलॉजी संचालित करने का ही उदाहरण लीजिए। योजना कई बार बनी, पर धरातल पर उतर नहीं पाई है। कारण ये कि इसके लिए आवश्यक लैब टेक्नीशियन अस्पताल के पास नहीं हैं। इसी कारण कल्चर टेस्ट पर भी अडंगा पड़ गया है।

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