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‘सतीश शुक्ल’ बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं: डी0जी0पी0

(सुरेन्द्र अग्रवाल द्वारा)
देहरादून। उत्तराखण्ड के पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी ने ‘‘बाल गुरू’’ लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उपन्यास के लेखक सतीश शुक्ल (सेवानिवृत्त डी.आई.जी.) को बहुमुखी प्रतिभा का धनी बताया।
पुलिस महानिदेशक ने बताया कि उन्होंने इस पुस्तक के आठ अध्याय पढ़े हैं। अपने बचपन की यादों को सहेज कर एक कृति के रूप में दर्शाना निसंदेह प्रशंसनीय है।

इन्दु कुमार पाण्डेय (पूर्व मुख्य सचिव) का उद्बोधन

समारोह को सम्बोधित करते हुए उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्य सचिव इन्दु कुमार पाण्डेय ने कहा कि स्मृति व कल्पना के माध्यम से साहित्य का सृजन होता है। मनोविकारों के उल्लेख के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि साहित्य अपनी मर्यादा खुद ही निर्धारित करता है।

सतीश शुक्ल ने की मन की बात

सेवानिवृत्त डी.आई.जी. सतीश शुक्ला ने अपनी इस कृति को सभी बाल सखाओं को समर्पित किया है। उन्होंने अपनी इस चौथी पुस्तक के संदर्भ में बोलते हुए दावा किया कि पाठकों को यह कृति अपने गुजरे बचपन की स्मृतियों में पहुंचा देगा और कई प्रसंग उन्हें अपने बचपन के करीब लगेंगे।

असीम शुक्ल साहित्यकार का उद्बोधन

बालगुरू नामक कृति के 400 पृष्ठों की समीक्षा को भूमिका के रूप में एक पृष्ठ में उकेरने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार असीम शुक्ल ने ‘‘बाल गुरू’’ को अधिक ईमानदारी पर आधारित बताया। उन्होंने लेखक की सराहना करते हुए कहा कि सतीश शुक्ल जी का कृत्रित्व बिना किसी बनावट के पाठकों के समक्ष पहुंचा।

ललित मोहन रयाल का समीक्षात्मक सम्बोधन

पुस्तक समीक्षा के रूप में कुमांऊ क्षेत्र के संभागीय खाद्य नियंत्रक ललित मोहन रयाल ने बताया कि पुस्तक की पृष्ठभूमि बुन्देलखण्ड के आस-पास होना दर्शाती है। इसमें लेखक ने तीन वर्ष के स्कूली जीवन का चित्रण किया है।

ऊषा कालोनी के ऊषा क्लब में ऊषा जी का उद्बोधन

स्मारोह के अन्तिम चरण में उत्तराखण्ड शासन की सचिव व लेखक सतीश शुक्ला की धर्मपत्नी ऊषा शुक्ला का संक्षिप्त उद्बोधन एक अद्भुत संयोग रहा। सहस्त्रधारा रोड स्थित ऊषा कालोनी के ऊषा क्लब में ऊषा शुक्ला ने पुस्तक समीक्षा के सम्बन्ध में यह कह कर सभी को ठहाके लगाने को मजबूर कर दिया कि सभी लोग मुझसे पुस्तक की समीक्षा के बारे में पूछते हैं वह तो 34 साल से जिन सतीश शुक्ला के साथ गृहस्थ जीवन में हैं तो अब उन्हें पुस्तक पढ़ने की क्या जरूरत है।

शुक्ल परिवार ने किया अतिथियों का हार्दिक स्वागत

पुस्तक के लोकार्पण पर लेखक सतीश शुक्ल जी का पूरा परिवार इस क्षण का साक्षी बना। सतीश शुक्ला एवं ऊषा शुक्ला जी ने सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया तो उनकी प्रतिभाशाली पुत्री यशा शुक्ला ने सभी मंचस्थ जनों एवं प्रमुख सचिव सुश्री राधा रतूड़ी जी को पुष्पगुच्छ देकर अभिवादन किया। शुक्ला परिवार के यशस्वी पुत्र नितेश शुक्ला सभी व्यवस्थाओं को कुशलता से संभालने में व्यस्त रहे।

साहित्य से परिपूर्ण संचालन ने सभी को किया प्रभावित

समारोह को साहित्यिक शब्दों से सजा कर किये जा रहे संचालन ने सभी को बेहद प्रभावित किया। संचालक का परिचय लेखक ने अपने सम्बोधन में कराया। संचालक डा0 रामविनय सिंह डी.ए.वी. कालेज देहरादून में प्रोफेसर के रूप में सेवारत हैं और उ0प्र0 के वाराणसी के निवासी हैं।

विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति से समारोह की बढ़ी गरिमा

सतीश शुक्ला परिवार के लिये गौरव का यह क्षण सदैव स्मरणीय रहेगा क्योंकि एक साथ दर्जनों विशिष्ट जन का मिलना काफी दुलर्भ रहता है। समारोह में वर्तमान डी.जी.पी. अनिल रतूड़ी, प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी के उपस्थिति उल्लेखनीय रही, वहीं पांच सेवानिवृत्त डी0जी0पी0 सुश्री कंचन चौधरी भट्टाचार्य, सुभाष जोशी, पी.डी. रतूड़ी, सत्यव्रत, जे.एस. पाण्डे ने साथी पुलिस उच्चाधिकारी रहे शुक्ला जी का प्रोत्साहन किया। दो पूर्व मुख्य सचिव इन्दु कुमार पाण्डेय व नृप सिंह नपलच्याल जी ने अपनी मौजूदगी से गरिमा प्रदान की। इनके अतिरिक्त अमित सिन्हा, दीपम सेठ, विमी सचदेवा व एस.एस.पी. देहरादून निवेदिता कुकरेती सहित अनेकों गणमान्य लोग मौजूद रहे। पत्रकार अनिल वर्मा, विकास गर्ग, रचना गर्ग भी समारोह में मौजूद रहे। जबकि बाल गुरू के लोकार्पण में श्री शुक्ल के बाल सखा ए0के0 राणा, जो कि जी.आई.सी. झांसी में उनके सहपाठी रहे, ने उपस्थित होकर बाल गुरू पुस्तक को जीवन्त कर समारोह को यादगार बना दिया।

आटो चालक से आई.पी.एस. तक का सफर तय किया लेखक ने

बेहद कम लोगों का जीवन पूरे समाज के लिये प्रेरणास्पद होता है। पुस्तक के लेखक सतीश शुक्ला भी ऐसे ही प्रेरणाप्रद महानुभाव की श्रेणी में विशेष स्थान रखते हैं। उ0प्र0 के मथुरा में 1955 में जन्म लेने वाले शुक्ल जी का गृह जनपद बुन्देलखण्ड का झांसी है। आॅटो रिक्शा चालक से अपना जीवन सफर शुरू करने वाले श्री शुक्ल ने वन विभाग में ए.सी.एफ. के रूप में सेवा की तदुपरान्त पुलिस सेवा में योगदान किया।

बुन्देलखण्ड को किया गौरवान्वित

उरई से लेकर उत्तराखण्ड तक पुलिस विभाग के महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं बेहतर जनसम्पर्क से श्री सतीश शुक्ला ने सर्वत्र ख्याति अर्जित की और अब लेखक के रूप में उनकी कृतियों को जिस प्रकार से साहित्यकारों ने सराहा है उससे यह बात दृष्टिगोचर होती है कि वह साहित्य के क्षेत्र में निसंदेह उच्च स्थान हासिल करेंगे। सतीश शुक्ल जी उपलब्धियों ने बुन्देलखण्ड को गौरव प्रदान किया है।

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