पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ गई हैं क्योंकि पंजाब कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा उनसे नाराज चल रहा है। पंजाब कांग्रेस का मानना है कि कांग्रेस को पंजाब के अलावा जहां पर भी हार का मुंह देखना पड़ा है उसके लिए सिद्धू ही जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं नाराजगी उस समय और भी ज्यादा बढ़ गई जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कैबिनेट की बैठक बुलाई थी और इस बैठक में सिद्धू शामिल नहीं हुए।
बैठक बलाने का उद्देश्य चुनाव के वक्त विधायकों की भूमिका एवं राज्य में कामकाज को लेकर चर्चा थी। हालांकि सिद्धू नहीं आए तो मुख्यमंत्री अमरिंदर ने उनका मंत्रालय बदल दिया और महत्वपूर्ण स्थानीय निकाय विभाग का जिम्मा वापस लेकर उन्हें ऊर्जा विभाग की कमान दे दी गई। विभागों के फेरबदल होने के बाद एक बार फिर सिद्धू ने संवाददाताओं से बातचीत की और कहा कि कुछ लोग मुझे पार्टी से बाहर निकालना चाहते हैं। इसीलिए हार की जिम्मेदारी ये लोग मेरे ऊपर थोपने में लगे हुए हैं।
सिद्धू ने कहा कि मेरे अलावा बाकियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? पंजाब में कांग्रेस के प्रदर्शन पर एक नजर डालें तो 13 लोकसभा सीटों वाले प्रदेश में पार्टी ने 8 सीटें जीती हैं, जबकि 542 सीटों पर लड़ी गए चुनाव में कांग्रेस को महज 52 सीटें ही हासिल हुईं। ऐसे में आप सब इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि पंजाब में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा। जब प्रदर्शन बेहतर रहा तो सिद्धू को विलेन क्यों बनाया जा रहा है?
कैप्टन से बात सिर्फ पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही नहीं हो रही है। क्रिकेट जगत से लेकर राजनीति तक में अपने बयानों से दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने वाले सिद्धू का रिश्ता कैप्टन के साथ हमेशा से विवादों में बना रहा। एक समय जब सिद्धू का क्रिकेट करियर ऊंचाईयों पर था तो उस वक्त इंग्लैंड में भारतीय टीम सीरीज खेलने गई और सिद्धू सीरीज को बीच में छोड़कर वापस स्वदेश आ गए। इसकी वजह सिद्धू का भारतीय टीम के कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन के साथ हुए विवाद को बताया गया। यहां तक की सिद्धू ने अजहरुद्दीन पर अत्याचार और बुरा व्यवहार करने का आरोप भी लगाया था।
वक्त ने पासा इस तरह पलटा कि मोहम्मद अजहरुद्दीन और नवजोत सिंह सिद्धू दोनों ही राजनीति में उतर आए। नवजोत सिंह सिद्धू का राजनीतिक जीवन में विवाद साल 2014 में शुरू हुआ। जब भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब के अमृतसर से अरुण जेटली को अपना उम्मीदवार मनाया और फिर सिद्धू नाराज हो गए। सिद्धू की नाराजगी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उन्होंने भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया और कैप्टन के करीब पहुंचने लगे और इसी के साथ विवाद भी बढ़ने लगा।