उत्तराखण्ड

उत्‍तराखंड के इन मंदिरों को किया जाएगा विकसित, बनेगा मास्टर प्लान

देहरादून:  केदारनाथ धाम एकदम नए कलेवर में निखर चुका है और बदरीनाथ धाम को संवारने का काम चल रहा है।

आने वाले दिनों में इन धामों की तरह ही देहरादून जिले के अंतर्गत हनोल स्थित महासू देवता और अल्मोड़ा स्थित जागेश्वर मंदिर को संवारने के लिए मास्टर प्लान बनाया जाएगा। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने रविवार को यह जानकारी साझा की। उन्होंने कहा कि मास्टर प्लान के अनुरूप इन मंदिरों को निखारा जाएगा।

कैबिनेट मंत्री महाराज ने कहा कि जून 2013 की केदारनाथ आपदा में तबाह हुई केदारपुरी अब मास्टर प्लान के अनुरूप नए कलेवर में निखर चुकी है। केदारनाथ धाम में आइएनआइ से वास्तुविद सेवाएं ली गईं। केदारपुरी का निखरा स्वरूप श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना है। केदारनाथ में यात्रियों की बढ़ती संख्या इसका उदाहरण है।

इन मंदिरों को किया जाएगा विकसित

केदारनाथ की तर्ज पर ही बदरीनाथ धाम को संवारा जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब केदारनाथ, बदरीनाथ की तरह ही महासू देवता और जागेश्वर मंदिर को विकसित किया जाना है।

इसके दृष्टिगत आइएनआइ को सिंगल कोर्स के माध्यम से अनुमति प्रदान किया जाना प्रस्तावित है। यह मिलते ही इन दोनों मंदिरों का मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा और फिर इसके आधार पर वहां यात्री सुविधाओं के विकास समेत अन्य कार्य किए जाएंगे।

जैव विविधता विरासतीय स्थलों को लेकर नहीं बढ़े कदम

जैव विविधता के मामले में उत्तराखंड भले ही धनी हो, लेकिन यह भी सच है कि प्रदेश में जैव विविधता विरासतीय स्थल घोषित करने के मामले में सरकार सुस्त रवैया अपनाए हुए है। यद्यपि, बीते 22 वर्षों में 13 स्थल चिह्नित अवश्य किए गए, लेकिन इसके आगे कदम नहीं बढ़े।

हैरत की बात ये है कि टिहरी जिले के देवलसारी और नैनीताल जिले के छोटी हल्द्वानी (विश्व प्रसिद्ध शिकारी व संरक्षणवादी जिम कार्बेट का गांव) के निवासियों की ओर से प्रस्ताव देने के बाद भी इस दिशा में कार्रवाई नहीं हो पाई है। यद्यपि, उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने अब विरासतीय स्थलों को लेकर शासन से मार्गदर्शन मांगा है।

उत्तराखंड में जैव विविधता अधिनियम-2002 लागू है। इसमें प्रविधान है कि स्थानीय निकायों के परामर्श से सरकार जैव विविधता विरासतीय स्थल अधिसूचित कर सकती है। जैव विविधता विरासतीय स्थल उन क्षेत्रों को घोषित किया जाता है, जो जैव विविधता के लिहाज से विशेष पहचान रखते हों।

साथ ही वहां संरक्षण की आवश्यकता भी हो। यद्यपि, राज्य में गठित जैव विविधता बोर्ड ने पूर्व में ऐसे स्थल चिह्नित करने का निश्चय किया। इस कड़ी में आरक्षित वन क्षेत्रों के भीतर सात और बाहर छह स्थल चयनित किए गए। इन्हें लेकर शासन स्तर पर मंथन हुआ और प्रथम चरण में पिथौरागढ़ जिले में थलकेदार को जैव विविधता विरासतीय स्थल घोषित करने पर जोर दिया गया। बावजूद इसके यह मुहिम आकार नहीं ले पाई।

विरासतीय स्थल घोषित करने के मामले में सरकारें हाथ खींचती आई हैं

असल में जैव विविधता विरासतीय स्थल घोषित होने पर वहां भी इको सेंसिटिव जोन की भांति खनन समेत कुछ गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है। ऐसे में विरोध की आशंका को देखते हुए विरासतीय स्थल घोषित करने के मामले में सरकारें हाथ खींचती आई हैं।

यद्यपि, अब विरासतीय स्थल के महत्व को समझते हुए स्थानीय ग्रामीण भी सामने आने लगे हैं। जैव विविधता के मामले में धनी देवलसारी के ग्रामीणों ने वहां इसके संरक्षण को कदम उठाए। साथ ही जैव विविधता बोर्ड को प्रस्ताव दिया कि देवलसारी को जैव विविधता विरासतीय स्थल घोषित किया जाए।

इसी तरह छोटी हल्द्वानी का प्रस्ताव भी बोर्ड को मिला है। बावजूद इसके इन दोनों मामलों में भी पहल नहीं हो पाई है। वह भी तब जबकि, जैव विविधता बोर्ड की ओर से इस बारे में शासन को विचार के लिए प्रस्ताव भी पूर्व में भेजे गए थे। बोर्ड के वर्तमान अध्यक्ष राजीव भरतरी के अनुसार जैव विविधता विरासतीय स्थलों के बारे में शासन से मार्गदर्शन मांगा गया है। इसके बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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