देहरादून। स्थानीय नगर निकायों में ओबीसी (अदर बैकवर्ड क्लास) आरक्षण के नए सिरे से निर्धारण की बाधा अब दूर हो गई है। ओबीसी आरक्षण समेत अन्य प्रविधानों को लेकर नगर निगम व नगर पालिका अधिनियम में संशोधन अध्यादेश को राजभवन ने हरी झंडी दे दी है। इसके साथ ही राज्य में निकाय चुनाव का रास्ता भी साफ हो गया है।
आरक्षण निर्धारित होने पर इस माह के आखिर तक चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है। यही नहीं, सरकार ने निकाय चुनाव लडऩे के इच्छुक उन व्यक्तियों को भी राहत दे दी है, जिनकी पहली संतान के जीवित रहते हुए दूसरी संतान जुड़वा है। इसे एक इकाई माना जाएगा और ऐसे लोग बच्चों की संख्या तीन होते हुए भी चुनाव लड़ सकेंगे।
दोषी पाए जाने पर नहीं रह सकेंगे निकाय के सदस्य
यह प्रविधान भी किया गया है कि वित्तीय अनियमितता अथवा किसी शिकायत के प्रकरण में नगर पालिका अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोषी पाए जाते हैं तो वे निकाय के सदस्य भी नहीं रह पाएंगे। साथ ही पांच साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार नगर निकायों में ओबीसी आरक्षण का नए सिरे से निर्धारण होना है। इसके लिए निकायों में ओबीसी के पिछड़ेपन के स्वरूप, प्रकृति व निहितार्थों की समसामयिक अनुभवजन्य जांच के लिए एकल समर्पित आयोग गठित किया गया है। यह अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुका है।
आयोग की संस्तुति के अनुसार आरक्षण निर्धारण के लिए नगर निगम व नगर पालिका अधिनियम में संशोधन के लिए पूर्व में अध्यादेश लाया गया था। अगस्त में हुए विधानसभा के ग्रीष्मकालीन सत्र में इसे रखा गया, लेकिन तब यह विषय प्रवर समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस विषय पर अध्ययन जारी रखने के साथ ही वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर चुनाव कराने की संस्तुति दी थी।
इसके बाद सरकार ने दोबारा नगर निगम व नगर पालिका अधिनियम में संशोधन अध्यादेश मंजूरी के लिए राजभवन भेजा। विधि विभाग से राय लेने के बाद अब राजभवन ने इसे मंजूरी दे दी है। अध्यादेश में कहा गया है कि समर्पित आयोग की अनुशंसा के आधार पर ओबीसी आरक्षण तय किया जाएगा।
यह भी साफ किया गया है कि अनुसूचित जाति, जनजाति व ओबीसी के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं होगा। यदि कहीं अनुसूचित जाति व जनजाति का आरक्षण 50 प्रतिशत या इससे अधिक है तो वहां ओबीसी को आरक्षण नहीं मिलेगा।