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मंत्री ने सरकार को दी चेतावनी, जनहित के काम को लेकर बैठेंगे अनशन पर

देहरादून। वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ हरक सिंह रावत की शासन के आला अधिकारियों या यूं कहें कि अपनी ही सरकार से नाराजगी दूर होने का नाम नहीं ले रही है। बीते रोज वन महकमे के अधिकारियों के विदेश दौरे की मंजूरी में विभागीय मंत्री को नजरअंदाज किए जाने को लेकर प्रमुख सचिव कार्मिक के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद डॉ रावत ने गुरुवार को मुख्यमंत्री एवं लोक निर्माण विभाग के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश को निशाने पर लिया। लालढांग- चिल्लरखाल मोटर मार्ग (कंडी रोड) के निर्माण पर रोक के आदेश से भड़के डॉ हरक सिंह रावत ने यहां तक कह डाला कि जनहित के काम पर रोक लगी तो वह हजार दफा मंत्री पद कुर्बान करने को तैयार हैं। साथ में अनशन पर बैठने की धमकी भी दी।

वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के लगातार दूसरे दिन तल्ख तेवरों से सरकार हलकान है। गुरुवार को वन एवं पर्यावरण मंत्री ने फिर नौकरशाही पर मनमानी करने का आरोप लगाया। इस बार लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग के सुदृढ़ीकरण के काम पर लोक निर्माण विभा ग की ओर से रोक लगाने पर विभागीय अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश पर मंत्री ने हमला बोला। वन मंत्री ने कहा कि उक्त मार्ग के निर्माण के संबंध में भूमि लोक निर्माण विभाग को विधिवत स्थानांतरित की गई है। निर्माण कार्य के लिए शासनादेश जारी हुआ है। इस कार्य में विभागीय मंत्री के नाते वह सीधे तौर पर जुड़े रहे। ऐसे में प्रभागीय वनाधिकारी लैंसडौन के कहने पर उक्त मार्ग निर्माण पर रोक नहीं लगाई जा सकती। इस मामले में उन्हें नजरअंदाज किया गया। इसके लिए उन्होंने अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश को जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही आरोप लगाया कि वह सरकार को गुमराह कर रहे हैं। मंत्री के स्तर पर अनुमोदित सड़क का निर्माण कार्य रोकने के के आदेश अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के जारी करने पर भी उन्होंने सवाल खड़े किए।

4.5 करोड़ की राशि का जिम्मेदार कौन 

डॉ रावत ने कहा कि एनजीटी के रोक लगाने का हवाला देते हुए सड़क निर्माण रोका गया, जबकि एनजीटी ने उक्त मामले में सिर्फ रिपोर्ट मांगी है। मोटर मार्ग के निर्माण के लिए लोक निर्माण विभाग टेंडर कर चुका है। तीन किमी सड़क पक्की हो गई है। पुलों का निर्माण कार्य चल रहा है। 4.5 करोड़ लागत से निर्माण कार्य जारी है। गरीब जनता की इस धनराशि के लिए जवाबदेही किसकी होगी। सड़क निर्माण के लिए भूमि हस्तांतरण वन संरक्षक, प्रभागीय वनाधिकारी समेत विभिन्न स्तरों के बाद उनके स्तर पर पत्रावली अनुमोदन के बाद हुआ। सिर्फ प्रभागीय वनाधिकारी के आदेश पर ही उक्त कार्य को रोकने के आदेश जारी करने पर उन्होंने सवाल दागे। उन्होंने कहा कि सड़क के लिए भूमि हस्तांतरण गलत था तो स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड या नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड समेत विभिन्न संबंधित संस्थाओं की पहले अनुमति क्यों नहीं ली गई।

सहन करने की भी एक क्षमता 

डॉ हरक सिंह रावत यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे ये भी कहा कि वह फक्कड़ आदमी हैं, जब लड़ते हैं तो हिम्मत से लड़ते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ ताकतें प्रदेश को बर्बाद करना चाहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी नाराजगी मुख्यमंत्री के खिलाफ नहीं है। हालांकि साथ में यह भी कहा कि अपर मुख्य सचिव स्तर का अधिकारी गलत निर्णय कर रहा है तो किसकी शह पर यह सब हुआ। आखिर सहन करने की एक क्षमता होती है। वह आत्म संतुष्टि के लिए काम करते हैं। सड़क हरक सिंह की नहीं, स्थानीय लाखों लोगों की जरूरत है। इसके बनने से 15 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा।

पीसीसीएफ विदेश दौरे से तत्काल लौटें 

वन मंत्री ने यह भी कहा कि सूबे के जंगलों में पिछले कई दिनों से लगी आग थमने का नाम नहीं ले रही है। ऐसी मुश्किल घड़ी में भी वन महकमे के मुखिया यानी प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) समेत चार वनाधिकारी जंगलों को आग के हवाले छोड़ विदेश दौरे पर रवाना हो चुके हैं। उन्हें तत्काल वापस आना चाहिए। आचार संहिता लागू होने की वजह से वह विधिवत बैठक नहीं कर सकते।

सरकार हुई सक्रिय, विपक्ष ने लपका मुद्दा 

वन विभाग के अधिकारियों की विदेश यात्रा से खफा वन मंत्री हरक सिंह रावत ने लगातार दूसरे दिन नौकरशाही पर निशाना साधा तो मंत्री के तल्ख तेवरों के बाद सरकार भी सक्रिय हो गई। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वन मंत्री हरक सिंह रावत द्वारा कार्मिक विभाग को बिना विभागीय मंत्री की संस्तुति के अधिकारियों को विदेश भेजने के प्रकरण का संज्ञान लिया है। उन्होंने इस संबंध में अधिकारियों से वार्ता की और इस तरह के प्रकरणों को न दोहराने की नसीहत दी। उधर, कांग्रेस ने मुद्दे को लपकते हुए कहा कि अगर वन मंत्री धरने पर बैठते हैं तो पार्टी भी इसमें शामिल होगी।

गुरुवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सचिवालय पहुंचकर इस प्रकरण में अधिकारियों से विस्तार से जानकारी ली। सूत्रों के मुताबिक बीते वर्ष भी मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को विदेश भेजने के एक प्रकरण पर अनुमति देने से पहले विभागीय मंत्री की संस्तुति लेने के निर्देश बकायदा फाइल पर नोट कर दिए थे। यह मामला भी वन विभाग से ही संबंधित था। उनका कहना था कि ऐसे में इसे नजीर मान लेना चाहिए था। बावजूद इसके इस बार ऐसा नहीं हुआ। दरअसल, अधिकारियों को विदेश भेजने की अनुमति देने के लिए संबंधित विभाग कार्मिक विभाग को पत्रावली भेजता है। इसके बाद कार्मिक इसे मुख्य सचिव के अनुमोदन को भेजता है। वहां से यह पत्रावली विभागीय मंत्री अथवा मुख्यमंत्री को संस्तुति के लिए भेजी जाती है। इस बार भी वन विभाग से कार्मिक और फिर मुख्य सचिव तक यह फाइल पहुंची लेकिन इसके बाद विभागीय मंत्री के स्थान पर सीधे मुख्यमंत्री से संस्तुति के बाद अधिकारियों को अनुमति जारी कर दी गई। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री से अनुमति लेने के बाद सीधे वन विभाग ने इन्हें अनुमति प्रदान कर दी।

उधर, वन मंत्री हरक सिंह तेवर के अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने से भाजपा संगठन भी असहज है। हालांकि, पार्टी ने इसे घर का मामला बताते हुए प्रकरण को संभालने का प्रयास किया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट गुरुवार को ही प्रदेश में वापस लौटे। प्रकरण पर उन्होंने कहा कि वह अभी बाहर से आए हैं, इसलिए प्रकरण की उन्हें पूर्ण जानकारी नहीं है। संवादहीनता के कारण संभवतया ऐसा हुआ होगा। यह घर का मामला है इसे मिलबैठ कर सुलझा लिया जाएगा। इसमें कुछ होगा तो आगे बात कर ली जाएगी।

उधर, विपक्ष कांग्रेस ने मंत्री की नाराजगी को मुद्दे को रूप में लपकने में देरी नहीं की। वन मंत्री हरक सिंह रावत द्वारा शासन के खिलाफ मोर्चा खोलने पर कांग्रेस ने सरकार को घेरा। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि हरक सिंह रावत एक वरिष्ठ मंत्री है। जब उन्हें कुछ बात महसूस हुई होगी, तभी उन्होंने ऐसी बात कही है। अगर वह सरकार के खिलाफ धरने पर बैठते हैं तो कांग्रेस भी उनका साथ देने को तैयार है।

वन विभाग आदेश निरस्त करे तो काम करने को तैयार लोनिवि 

वन मंत्री हरक सिंह रावत द्वारा लगाए गए आरोपों पर अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने स्पष्ट किया है कि निर्माण कार्यों पर रोक शासन ने नहीं बल्कि वन विभाग ने लगाई है। उन्होंने कहा कि इस मामले में एनजीटी में लोनिवि को भी पार्टी बनाया गया है। अगर वन विभाग का आदेश निरस्त कर दिया जाए और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से लोनिवि को पार्टी के रूप में हटा दिया जाए तो निर्माण कार्य शुरू करा दिया जाएगा।

गुरुवार को वन मंत्री हरक सिंह रावत ने अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश पर सरकार को गुमराह करने के साथ ही चिल्लरखाल-लालढांग मार्ग के निर्माण को रोकने का आरोप लगाया। इस पर अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने कहा कि शासन ने वन विभाग द्वारा निर्माण कार्य पर रोक लगाने के बाद एक पत्र वन मंत्री को लिखा गया था। इस पत्र में यह साफ किया गया था कि वन विभाग द्वारा आदेश निरस्त करने के बाद ही लोक निर्माण विभाग यहां निर्माण कार्य करा सकता है। ऐसे में प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव एवं मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक को निर्देशित किया जाए ताकि अवरुद्ध कार्य को पूरा किया जा सके। इसके अलावा मई माह में एनजीटी ने एक आदेश जारी किया जिसमें राजाजी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में आने वाले लालढांग-चिल्लरखाल मार्ग के निर्माण को लेकर मिली याचिका का जिक्र किया गया है। आदेश में चार विभागों की एक संयुक्त समिति बनाते हुए तीन माह के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। इस संयुक्त समिति में लोनिवि को भी शामिल किया गया है। इसी को देखते हुए लोनिवि ने वन विभाग के निर्देशों के क्रम में ही रोक के बावजूद निर्माण कार्य को लेकर जांच करने के निर्देश दिए हैं।

सड़क निर्माण कार्य को लेकर जांच समिति गठित 

लालढांग-चिल्लरखाल मार्ग पर रोक के बावजूद चल रहे निर्माण कार्यों को लेकर शासन ने सख्ती दिखाई है। शासन ने इस मामले में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। इस समिति से कार्यस्थल की वीडियोग्राफी, मजदूर व अधिकारियों के बयान सहित पूरी रिपोर्ट शासन को उपलब्ध कराने को कहा है, ताकि इनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। शासन द्वारा यह पत्र जारी करने के बाद ही वन मंत्री हरक सिंह रावत के तेवर तल्ख हुए।

प्रभागीय वनाधिकारी लैंसडौन वन प्रभाग, कोटद्वार के पत्र पर शासन ने 30 अप्रैल को लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग पर कराए जा रहे सभी कार्यों पर रोक लगा थी। हालांकि, इसके बाद भी इस मार्ग पर निर्माण कार्य चल रहा था। कुछ दिनों पूर्व शासन में यह शिकायत की गई थी कि शासन द्वारा रोक के बावजूद लोक निर्माण विभाग यहां निर्माण कार्य करा रहा है।

इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए शासन ने इसकी जांच लोनिवि के तकनीकी सलाहकार आरपी भट्ट, शासन में लोनिवि अुनभाग में तैनात अनुसचिव और लोनिवि के वरिष्ठ स्टाफ अफसर अशोक कुमार को सौंपते हुए उन्हें जांच अधिकारी नामित किया। जांच दल को यह निर्देश दिए गए थे कि वह मौका मुआयना करे और यदि यहां काम किया जा रहा है तो इसकी विस्तृत रिपोर्ट बनाई जाए, जिसमें दोषी अधिकारियों के नाम व पदनाम सहित अपनी संस्तुति शासन को उपलब्ध कराई जाए ताकि इनके विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की जा सके। सूत्रों की मानें तो शासन के इस कदम के बाद लोनिवि के अधिकारियों ने पूरी तरह निर्माण कार्य से हाथ खींच लिए। निर्माण कार्य पर रोक के बाद वन मंत्री हरक सिंह रावत का पारा चढ़ा और उन्होंने सीधे अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश को निशाने पर ले लिया।

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