अंबाला/चंडीगढ़, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अचानक निधन की खबर से हरियाणा भी शोक में डूब गया है। महज 25 साल की उम्र में हरियाणा में कैबिनेट मंंत्री बनने वाली सुषमा स्वराज अंबाला की बेटी थीं। वह दो बार अंबाला छावनी सीट से विधायक बनीं। देर रात उनके निधन की खबर पर लोगों को यकीन नहीं हाे पा रहा है। दिल्ली और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने के बावजूद सुषमा स्वराज का अंबाला में अपने मायके और हरियाणा व चंडीगढ़ से हमेशा जुड़ाव बना रहा।
सुषमा स्वराज अंबाला छावनी सीट से 1977 और 1987 में विधायक चुनी गई थीं। वह 1977 में महज 25 साल की उम्र में विधायक बनीं और फिर जनता पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं। वह महज 27 साल की आयु में 1979 में जनता पार्टी की हरियाणा इकाई की अध्यक्ष बनीं।
हरियाणा में चौधरी देवीलाल सरकार में दो बार मंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने 1985-86 के न्याय युद्ध आंदोलन में भी हिस्सेदारी की थी। यह न्याय युद्ध एसवाईएल नहर निर्माण को लेकर चौ. देवीलाल और डा. मंगलसेन की जोड़ी के नेतृत्व में चलाया गया था। इस आंदोलन में महिलाओं के नेतृत्व सुषमा स्वराज ने ही किया था। सुषमा स्वराज को लाल कृष्ण आडवाणी केंद्र की राजनीति में ले गए थे। सुषमा स्वराज अक्सर हरियाणा और चंडीगढ़ आती रहती थीं।
लोकसभा चुनाव में गृह सीट अंबाला के आरक्षित होने के कारण उन्होंने संसद में जाने के लिए करनाल से तीन बार चुनाव लड़ा, लेकिन सफल नहीं हो पाईं। वर्ष 1984 में करनाल लोकसभा सीट से हार मिलने के बाद सुषमा ने 1987 में अंबाला छावनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। विधायक रहते ही 1989 में फिर से करनाल लोकसभा सीट से फिर से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं।
भाजपा ने उन्हें 1990 में राज्य सभा की सदस्य बनाकर संसद भेज दिया। उनके विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद अनिल विज को चुनाव मैदान में उतारा गया। वर्ष 1996 तक राज्यसभा सदस्य रहने के दौरान सुषमा स्वराज देश के सियासी पटल पर छा गईं। वह दक्षिण दिल्ली से चुनाव जीतकर सांसद बनीं। 13 दिन और 13 महीने की वाजपेयी सरकार में मंत्री रहीं।
वर्ष 1996 में सुषमा स्वराज को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। यह पहला मौका था जब सुषमा को केंद्र में मंत्री पद मिला। हालांकि यह सरकार 13 दिन ही चल सकी। इसके बाद 1998 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए और केंद्र में एनडीए सत्ता में आया। इस बार सुषमा स्वराज मंत्री बनीं और पहले के मुकाबले दो मंत्रालयों की कमान सौंपी गई। इस सरकार में उनको सूचना एवं प्रसारण के अलावा दूरसंचार मंत्रालय की भी जिम्मेदारी दी गई। यह सरकार भी 13 महीने चल पाई।
अंबाला में शिक्षा और सियासत दाेनों का सफर शुरू हुआ
सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हुआ था। उनकी शिक्षा और सियासत दाेनों का सफर अंबाला से शुरू हुआ। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिष्ठित सदस्य थे। उन्होंने राजनीति विज्ञान और संस्कृत विषयों से अंबाला छावनी के एसडी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। सुषमा स्वराज ने चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय के कानून विभाग से एलएलबी की डिग्री हासिल की। 1970 में उनको अंबाला छावनी के एसडी कॉलेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा का पुरस्कार मिला।
सुषमा स्वराज अतिरिक्त पाठ्यचर्या गतिविधियों में प्रवीण थीं। उनकी रुचि शास्त्रीय संगीत,कविता,ललित कला और नाटक में भी थी। उन्हें कविता और साहित्य पढ़ना भी अच्छा लगता था। सुषमा स्वराज को लगातार तीन वर्षों तक एसडी कॉलेज के एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ सैनिक छात्रा घोषित किया गया। हरियाणा के भाषा विभाग द्वारा आयोजित एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उन्हें लगातार तीन वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ हिंदी वक्ता पुरस्कार प्रदान किया गया।
वह एसी बाली मेमोरियल घोषणा प्रतियोगिता में पंजाब विश्वविद्यालय की सर्वश्रेष्ठ हिंदी वक्ता बन गईं। उन्होंने भाषण प्रतियोगिताओं, वाद विवाद प्रतियोगिताओं, नाटकों और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में कई पुरस्कार जीते हैं। वह चार साल तक हरियाणा राज्य के हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षा भी रहीं।
वह छात्र नेता के रूप में बनाई पहचान, आपातकाल के विरोध में हुईं मुखर
सुषमा स्वराज ने सियासत की शुरूआत छात्र नेता के रूप में की थी। वह वर्ष 1970 में छात्र राजनीति में सक्रिय हुईं। वह 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुईं। शानदार वक्ता और प्रचारक हाेने के कारण उनको जल्द ही उनको खास पहचान मिली। आपातकाल के बाद 1977 हुए विधानसभा चुनाव में विधायक बनीं। सुषमा स्वराज को हरियाणा राज्य विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ वक्ता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।