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कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों व किशारों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने कमर कस ली

अब जबकि दूसरी लहर से राहत मिली है तो उत्तर प्रदेश सरकार ने सारी ताकत तीसरी लहर से मुकाबले में झोंक दी है। सरकार एक ऐसी व्यूह रचना में जुटी है, जिसमें फंसकर तीसरी लहर दम तोड़ दे। इसका एक प्रमुख अस्त्र है टीकाकरण के लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त करना। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के रूप बदलने पर सितंबर में सर्वाधिक केस आ सकते हैं। आइआइटी के विशेषज्ञों के आकलन के मुताबिक तीसरी लहर की पीक अक्टूबर में आएगी। चिंताजनक बात यह है कि वायरस के म्यूटेशन (रूप बदलने) पर दूसरी लहर से भी ज्यादा भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने उत्तर प्रदेश में जो हालात पैदा कर दिए थे, वह बहुत डरावना था। सरकार और प्रशासन के हाथ-पांव फूल चुके थे तो आम जनता भी जान की चिंता कर इतनी उतावली हो उठी थी कि जरूरत न होते हुए भी चिकित्सा उपकरण, मेडिकल आक्सीजन और दवाइयों का स्टाक घर में रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। कालाबाजारियों ने भी इसका खूब फायदा उठाया, लेकिन उत्तर प्रदेश की सरकार ने बहुत जल्द इस समस्या पर काबू पा लिया। बेहतर कोविड प्रबंधन से न केवल कालाबाजारियों पर अंकुश लगा, बल्कि चिकित्सा संसाधन भी सहजता से लोगों को सुलभ होने लगे। आज स्थिति यह है कि कोरोना संक्रमण पूरी तरह से काबू में है। रिकवरी रेट ज्यादा है और पाजिटिविटी रेट अब 0.07 फीसद से भी कम हो चुका है, लेकिन अब तीसरी लहर की आशंका से एक बार फिर सरकार की नींद उड़ी हुई है। इसीलिए पहले जैसे हालात फिर न उत्पन्न हों, इसकी तैयारी जोर-शोर से शुरू कर दी गई है।

हर समस्या कोई न कोई सीख और अनुभव जरूर देती है। दूसरी लहर से सरकार को अनुभव यह मिला कि समस्या खड़ी होने से पहले ही इतनी व्यापक तैयारी कर ली जाए कि समस्या छोटी पड़ जाए। इसके लिए सरकार दो तरफा प्रयास कर रही है। पहला प्रयास है तीसरी लहर आने से पहले तैयारी पूरी हो। इसलिए कोविड वार्डो में उपचार के लिए आवश्यक उपकरण, दवा और मानव संसाधन की व्यवस्था करने का सुझाव दिया है। इसी के आधार पर चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मेडिकल कालेजों, चिकित्सा संस्थानों और महाविद्यालयों में पीडियाटिक आइसीयू (पीकू) बेड तैयार किए हैं। हर जिले को मेडिकल आक्सीजन उत्पादन के मामले में सक्षम बनाया जा रहा है। इसके अलावा अन्य जरूरी चिकित्सा संसाधन बढ़ाए जा रहे हैं। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम है कोरोना टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करना। प्रदेश में दिसंबर तक 13 करोड़ लोगों को टीका लगाए जाने का लक्ष्य है, जिनमें 18 वर्ष से 44 वर्ष के नौ करोड़ और 45 साल से ज्यादा आयु के चार करोड़ लोग शामिल हैं। प्रदेश में टीकाकरण की जो गति है, यदि वह बरकरार रही तो यह लक्ष्य तीन महीने पहले 30 सितंबर तक ही हासिल किया जा सकता है। सरकार की इसी तेजी का परिणाम है कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश टीकाकरण के मामले में देश में अव्वल है।

एक सवाल यह है कि एक तरफ जहां अगले वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव संपन्न होने हैं, वहीं उसकी तैयारियों को तरजीह देने के बजाय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चिंता कोरोना को लेकर ज्यादा क्यों झलक रही है? ऐसे सवालों के विश्लेषण पर कई बार इसके गहन अर्थ भी सामने आते हैं। जब जनता की जान जोखिम में हो फिर भी राजनेता राजनीति करने से बाज न आएं तो समझा जा सकता है कि उस राजनेता की सत्ता की लालसा कितनी प्रबल होगी। प्रदेश से इतर कई राज्यों में ऐसा देखने को मिला भी जहां कोरोना से निपटने के उपाय करने के बजाय ‘ब्लेम गेम’ की खिचड़ी ज्यादा पकी। नतीजतन बड़ी संख्या में आम जनता को असमय जान गंवानी पड़ी। जनता की जान की कीमत पर यह राजनीति देश में बहुत खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है, लेकिन एक संवेदनशील, सक्रिय और जनपक्षधर सरकार की सोच कुछ और ही होती है, जिसे जनता बखूबी समझती भी है। योगी सरकार ने इसी संवेदनशीलता और सक्रियता का परिचय दिया है। सरकार का मानना है कि टीकाकरण ही एक ऐसा अस्त्र है, जो कोरोना की बड़ी से बड़ी चुनौती को निस्तेज करेगा। इसीलिए ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण कराने का प्रयास किया जा रहा है। प्रदेश में बीते 21 जून से सभी जिलों में एक तिहाई ब्लाक को क्लस्टर में बांटकर टीकाकरण किया जा रहा है। और भी ज्यादा गहन पहुंच बनाने के लिए एक ब्लाक को चार से लेकर 12 क्लस्टर में विभाजित कर गांव-गांव टीमें टीकाकरण कर रही हैं। इतना ही नहीं, एक जुलाई से प्रतिदिन 10 लाख से 12 लाख तक वैक्सीन और फिर आगे 15 लाख वैक्सीन प्रतिदिन लगाए जाने का लक्ष्य है।

कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में लक्ष्य के मुकाबले टीकाकरण अभियान दो कदम आगे चल रहा है। सरकार ने अकेले जून में ही एक करोड़ लोगों को टीके का सुरक्षा-चक्र देने का प्लान बनाया था, पर एक सप्ताह पूर्व ही 93 लाख से अधिक लोगों का टीकाकरण करा लिया गया। यही तेजी बरकरार रही तो इसी महीने डेढ़ करोड़ लोगों को टीके आसानी से लगाए जा सकेंगे। फिलहाल सरकार की तैयारियों को देखकर सुखद अहसास तो हो रहा है, लेकिन अगली चुनौती से पार पाने के बीच में यदि किसी भी स्तर पर किसी भी तरह की ढिलाई सामने आई तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा। इस तरफ भी सरकार को पूरा ध्यान देना होगा।

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