उत्तराखण्ड

सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पहली अग्निपरीक्षा में कामयाबी हासिल की

देहरादून। सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद इसी मार्च में तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री का पद संभाला और अब अपने कार्यकाल के दो महीने पूरे होने से पहले ही पहली अग्निपरीक्षा में कामयाबी हासिल कर ली। सल्ट विधानसभा सीट के उप चुनाव के नतीजे से भले ही सीटों के गणित पर कोई असर नहीं पड़ना, मगर भाजपा के लिए यह उप चुनाव साख का सवाल बन गया था। खासकर नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए, क्योंकि उनके नेतृत्व में लड़ा गया यह पहला चुनाव था। सत्तारूढ़ भाजपा के लिए इसलिए भी उप चुनाव के नतीजे की अहमियत ज्यादा है, क्योंकि इसे इस बात का संकेत माना जा सकता है कि पार्टी के खिलाफ फिलहाल तो एंटी इनकंबेंसी फैक्टर काम नहीं कर रहा है। वैसे, आगामी विधानसभा चुनाव से पहले तीरथ को खुद भी उप चुनाव लड़ना है, विधायक बनने के लिए। अभी तीरथ पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद हैं।

सियासत है जनाब, कोई कैसे बाज आए

भाजपा सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद सत्ता संभालने पर नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने एक बढिय़ा पहल की। दरअसल, उन्होंने कोरोना के बढ़ते मामलों पर सबको साथ लेकर चलने की मंशा जताते हुए सर्वदलीय बैठक बुलाई। ऐसा नहीं कि इससे पहले कभी सर्वदलीय बैठक नहीं हुई। कई बार हुई, हर साल कम से कम दो बार तो होती ही है, मगर केवल विधानसभा सत्र से पहले। यह पहला अवसर रहा, जब इससे इतर मुख्यमंत्री ने अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं को मंथन के लिए आमंत्रित किया। यह बैठक वर्चुअल हुई, सभी ने अपने सुझाव दिए कि किस तरह कोरोना से पार पाया जा सकता है। अभी बैठक हुए चंद ही घंटे गुजरे कि सरकार पर विफलता का आरोप मढ़ते हुए हमले शुरू हो गए। लाजिमी तौर पर इसकी शुरुआत भी कांग्रेस की ही तरफ से हुई। आखिर मुख्य विपक्षी दल जो है, कैसे भला अपनी भूमिका बिसरा दे।

मुखिया ने मोर्चे पर तैनात किए महारथी

पिछले साल कोरोना के मामलों को लेकर उत्तराखंड कुछ राहत में रहा, मगर अब दूसरी लहर में संक्रमण की गति काफी तेज है। रोजाना पांच हजार से ज्यादा मामलों ने सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती ला खड़ी की है। यही वजह रही कि पहले नौकरशाही को जिम्मा सौंप चुके मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को अंतत: अपने मंत्रियों को मोर्चे पर तैनात करने का निर्णय लेना पड़ा। सभी मंत्रियों को अलग-अलग जिलों का जिम्मा सौंपा गया है। मंत्रियों ने जिम्मेदारी संभाल भी ली है। जिलों में मंत्री सरकारी मशीनरी के साथ तालमेल बिठाकर हालात को काबू करने की कोशिशों में जुटे हैं। सूबे में अब चंद महीनों बाद ही विधानसभा चुनाव हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो मंत्रियों को कोरोना पर नियंत्रण को लेकर चुनावी साल में अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। वैसे, सभी यही दुआ कर रहे हैं कि मंत्री जल्द से जल्द यह परीक्षा पास कर लें।

घर में घिरे हरदा, क्या भेदेंगे चक्रव्यूह

सल्ट उप चुनाव में कांग्रेस कोई चमत्कार नहीं दिखा सकी। हालांकि किसी को नतीजे से अचरज भी नहीं हुआ, मगर कांग्रेस के अंदरूनी समीकरणों पर जरूर इसका असर दिखेगा। अल्मोड़ा जिला, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का घर है। सल्ट इसी जिले की एक विधानसभा सीट है, यानी हरदा अपने घर में ही सीट नहीं बचा पाए। दरअसल, प्रत्याशी चयन उन्हीं की मर्जी के मुताबिक हुआ। खुद हरदा कोविड से जीतकर अंतिम दिन चुनाव प्रचार को सल्ट पहुंचे, मगर पूरी मेहनत के बाद भी पार्टी प्रत्याशी की चुनावी नैया मझधार में डूबने से बचा नहीं सके। अब जबकि विधानसभा चुनाव को चंद महीने शेष हैं, कांग्रेस में सल्ट की हार पर घमासान मचना तय है। हरदा अकसर अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर रहते हैं। देखते हैं इस दफा अपने ही घर में घिरे हरदा क्या उनके लिए रचा जाने वाला चक्रव्यूह भेद पाएंगे।

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