देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे
देहरादून: उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। राज्य का सैन्य इतिहास वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से खुद में समेटे हुए है। यहां के लोकगीतों में शूरवीरों की जिन गाथाओं का जिक्र मिलता है, वह प्रदेश की सीमाओं में न सिमटकर देश विदेश तक फैली हैं।
कारगिल युद्ध की वीर गाथा भी इस वीरभूमि के जिक्र बिना अधूरी है। राज्य के 75 सैनिकों ने इस युद्ध में देश रक्षा के लिए प्राण न्योछावर किए। ऐसा कोई पदक नहीं, जो राज्य जांबाजों को न मिला हो। इनकी याद में जहां एक ओर आखें नम हो जाती हैं, वहीं सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे
देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं। इन युवाओं में सेना में जाने का क्रेज आज भी बरकरार है। यही कारण है कि आइएमए से पासआउट होने वाला के हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से है। वहीं भारतीय सेना का हर पाचवां जवान भी इसी वीरभूमि में जन्मा है।
देश में जब भी कोई विपदा आई तो यहां के रणबांकुरे अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे। आजादी बाद से अब तक हुए विभिन्न युद्ध व आपरेशन में उत्तराखंड के 1685 सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। वर्ष 1999 में हुई कारगिल की लड़ाई में भारतीय सेना ने पड़ोसी मुल्क की सेना को चारों खाने चित कर विजय हासिल की।
कारगिल योद्धाओं की बहादुरी का स्मरण करने व बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए 26 जुलाई को प्रतिवर्ष कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। अति दुर्गम घाटी व पहाड़ियों में देश की आन, बान और शान के लिए भारतीय सेना (वायु सेना समेत) के 526 जवान बलिदान हुए थे। इनमें 75 जांबाज अकेले उत्तराखंड से थे। प्रदेश के सवांधिक सैनिकों ने कारगिल युद्ध में बलिदान दिया। एक छोटे राज्य के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।
गढ़वाल राइफल्स के 47 जवान बलिदान
बलिदान का यह जज्बा आज भी पहाड़ भुला नहीं पाया है। जब गढ़वाल रेजीमेंटल सेंटर लैंसडौन के परेड मैदान पर हेलीकाप्टर से बलिदानियों के नौ शव एक साथ उतारे गए तो पूरा पहाड़ अपने लाडलों की याद में रो पड़ा था। कारगिल आपरेशन में गढ़वाल राइफल्स के 47 जवान बलिदान हुए थे, जिनमें 41 जांबाज उत्तराखंड मूल के ही थे।
वहीं, कुमाऊं रेजीमेंट के भी 16 जांबाज बलिदान हुए। इस आपरेशन में मोर्चे पर डटे योद्धाओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जवानों ने कारगिल, द्रास, मशकोह, बटालिक जैसी दुर्गम घाटी में दुश्मन से जमकर लोहा लिया। युद्ध में बीरता प्रदर्शित करने पर मिलने वाले वीरता पदक इसी की बानगी है।