बिहार: जहरीली शराब से हो रही मौतों पर सीएम नीतीश सख्त
बिहार में धनतेरस से लेकर छठपर्व के समापन तक जहां घर-घर में पवित्र उत्सवी माहौल रहा, वहीं कहीं-कहीं रुदन भी उठा। जो जहरीली शराब के सेवन से घर के सदस्य की मौत के कारण था। इसी के साथ एक बार फिर शराबबंदी की समीक्षा को लेकर स्वर तेज हो गए हैं। विपक्षी ही नहीं, सहयोगी दल भाजपा के तेवर भी अब इस मुद्दे पर तल्ख हैं। पिछले 10 दिनों के भीतर 50 से अधिक हुई मौतों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का रुख भी अब कड़ा हो चुका है और 16 नवंबर को उन्होंने इसकी समीक्षा के लिए उच्चस्तरीय बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि नीतीश इस बैठक में शराबबंदी पर कुछ कड़े फैसले ले सकते हैं।
गोपालगंज जिले की तुरहा टोली में बीते शनिवार को जहरीली शराब कांड के बाद आरोपित के घर कुर्की-जब्ती का इश्तेहार चस्पा करती पुलिस। फाइल
बिहार में शराबबंदी विधिवत पांच अप्रैल, 2016 को लागू की गई थी। लेकिन उसके बावजूद शराब बिकनी बंद नहीं हुई। पड़ोसी राज्यों से सप्लाई जारी है, जो सेवन करने वालों को अधिक दाम पर आसानी से उपलब्ध हो रही है। शराबबंदी के बाद अवैध रूप से पनपे इस धंधे को रोकने के हरसंभव प्रयास किए जाने के बावजूद इस पर रोक नहीं लग सकी। आए दिन शराब की जब्ती इस बात का प्रमाण है कि प्रदेश में शराब आ रही है। बंदी के बाद से अब तक 187 लाख लीटर से अधिक की बरामदगी इसका प्रमाण है। कार्रवाई भी हुई है, अब तक तीन लाख से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए हैं और 700 से अधिक पुलिस व उत्पादकर्मी भी निपटे हैं। सख्ती का नतीजा यह रहा कि अवैध भट्ठियां पनपीं और जहरीली शराब से मौतें भी होने लगीं। पिछले दस दिनों में ही मुजफ्फरपुर, बेतिया, गोपालगंज व समस्तीपुर में ही लगभग 50 लोगों की मौत हो गई। यह पहली बार नहीं हुआ है। इन मौतों के बाद एक बार फिर प्रदेश में शराबबंदी की नए सिरे से समीक्षा करने की मांग उठने लगी है।
विपक्ष तो हमेशा से ही शराबबंदी समाप्त करने की मांग उठाता रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव आरोप लगाते रहे हैं कि शराबबंदी से जहां सरकार को पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व का नुकसान हो रहा है वहीं लगभग 20 हजार करोड़ का अवैध व्यापार पनप चुका है। शराब की सप्लाई में लगे युवाओं का जीवन बर्बाद हो रहा है और पुलिस अपराध रोकने के बजाए शराब से धनार्जन में लगी है। सरकार के सहयोगी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी भी शराबबंदी पर अक्सर सवाल उठाते हैं। भाजपा भी पहले पर्दे के पीछे से इसकी समीक्षा की बात करती रही है, लेकिन इन मौतों के बाद प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल खुलकर बोलने लगे हैं। उन्होंने गत शनिवार को शराबबंदी कानून की नए सिरे से समीक्षा करने की मांग की है। उनका कहना है कि जिन जिलों में ज्यादा सख्ती की गई, वहीं जहरीली शराब से मौतों के मामले आ रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 16 नवंबर को आयोजित की जा रही समीक्षा बैठक को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं। कुछ का कहना है कि राजस्व के नुकसान और बढ़ते भ्रष्टाचार को देखते हुए कुछ शर्तो के साथ इसे खोलने पर विचार किया जा सकता है, जबकि मुख्यमंत्री को करीब से जानने वालों का कहना है कि शराबबंदी लागू रहेगी और बेचने व सेवन करने वालों पर और कड़ाई होगी।
सरकारी एजेंसियां भी इस बात की गवाही देती हैं कि शराबबंदी के प्रति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसी संजीदगी तंत्र में नहीं है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5, 2019-20) की रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र की तुलना में बिहार में अधिक लोग शराब का सेवन करते हैं। यह रिपोर्ट दिसंबर 2020 में जारी हुई थी, जब राज्य में शराबबंदी के चार साल पूरे हो गए थे। सर्वे में कहा गया कि 15 वर्ष से अधिक उम्र के 15.5 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं। महाराष्ट्र के लिए इस आयु वर्ग के लोगों का आंकड़ा 13.9 प्रतिशत है। यह जानकारी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि राज्य की महिलाएं भी शराब का सेवन कर रही हैं। इधर नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का अध्ययन कुछ और बता रहा है। इसके मुताबिक बिहार से अधिक किशोर मध्य प्रदेश व गुजरात में मद्य निषेध कानून का उल्लंघन करते हैं।