उत्तराखण्ड

सेना ने लापता जवान हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी को शहीद घोषित किया

छह माह पहले बार्डर पर लापता हुए सेना के जवान हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी का अब तक कुछ पता नहीं चला है। ऐसे में सैन्य प्रबंधन ने जवान को बैटल कैज्युल्टी (शहीद) मान लिया है। हालांकि शहीद जवान के परिवार को उम्मीद है कि उनका लाडला एक न एक दिन जरूर घर लौटेगा। सकुशल न सही तो जब तक जवान का पार्थिव शरीर अपनी आंखों से नहीं देख लेंगे, तब तक आस नहीं छोड़ेंगे। बहरहाल, प्रक्रिया के तहत लंबे समय तक लापता जवान का कोई सुराग नहीं लगने पर उसे शहीद मान लिया जाता है। इसके बाद शहीद जवान के सभी कागजात व सामान को घर पहुंचा कर आश्रितों को पेंशन मुहैया कराने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

11वीं गढ़वाल गढ़वाल राइफल्स के जवान राजेंद्र सिंह नेगी बीती आठ जनवरी को लापता हो गए थे। बताया गया कि अनंतनाग सेक्टर में पाक सीमा के ठीक सामने वाली पोस्ट पर बर्फ में पांव फिसलने से वह उस पार (पाकिस्तान सीमा) की तरफ गिर गए। मूलरूप से गैरसैंण ब्लॉक के रहने वाले हवलदार राजेंद्र का परिवार प्रेमनगर से आगे अंबीबाला स्थित सैनिक कॉलोनी में रहता है। लापता हुए जवान की तलाश में सेना द्वारा कई दिन तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली।

हालांकि, हवलदार राजेंद्र के परिवार के सदस्य बार-बार यही कहते रहे कि सैन्य यूनिट से संपर्क करने पर उन्हें सही जानकारी नहीं दी जाती है। जवान के बुजुर्ग पिता व अन्य पारिवारिक सदस्यों ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से भी उनके बेटे को वापस लाने की गुहार लगाई थी। पिछले छह माह से परिवार का हर सदस्य टूटा हुआ है। हर दिन इस उम्मीद से कट रहा है कि क्या पता, कल उनका लाडला घर लौट आए। बताया जा रहा है कि सेना ने भी अब हवलदार राजेंद्र को शहीद मानकर आगे की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

शहीद जवान की पत्नी राजेश्वरी नेगी इससे इत्तेफाक नहीं रखती हैं। कहती हैं, ‘जब तक सैन्य यूनिट द्वारा स्पष्ट रूप से उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती, या पार्थिव शरीर अपनी आंखों से नहीं देख लेती हूं, नहीं मानूंगी कि पति शहीद हो गए हैं।’ परिवार के सदस्यों में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि पत्राचार करने या फिर टेलीफोन से संपर्क करने पर सैन्य यूनिट की ओर से उन्हें अच्छा रिस्पांस नहीं मिलता है। यही नहीं, जनवरी में छोटे-बड़े नेता आए दिन घर पर जरूर आए। पर उसके बाद किसी ने परिवार की सुध नहीं ली है। सरकार व स्थानीय प्रशासन से भी परिवार को कोई मदद नहीं मिली है।

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