एक डोज लेने से कुछ नहीं होगा, वैक्सीन की लेनी होंगी दो खुराक, पढ़ें बूस्टर डोज का काम करने का तरीका
भारत सहित दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस को काबू में करने के लिए टीकाकरण प्रारंभ हो चुका है। अभी तक कई देशों में वैक्सीन की दो खुराकों में से पहली ही खुराक दी गई है। कोविड-19 की वैक्सीन ऐसी हैं, जिनमें दोनों खुराक लेने पर ही यह पूरी तरह से असरदार होगी। आइए जानते हैं कि वैक्सीन की पहली और दूसरी खुराक के बाद शरीर में क्या असर होता है और सिर्फ एक खुराक लेने का क्या प्रभाव होगा।
बूस्टर डोज ऐसे करती है असर
जब इम्यून सिस्टम तक पहली बार वैक्सीन पहुंचती है तो यह श्वेत रक्त कोशिका के दो महत्वपूर्ण प्रकारों को सक्रिय करती है। पहली प्लाजमा बी सेल है, जो प्राथमिक रूप से एंटीबॉडी बनाती है। दुर्भाग्य से यह कम समय के लिए जीवित रहती है, जिसके कारण आपके शरीर में कुछ सप्ताह तक ही एंटीबॉडी रह सकती है। दूसरी खुराक के बिना यह अक्सर तेजी से कम होती है। इसके बाद टी-सेल आती हैं, जो रोगाणुओं को पहचानकर उन्हें नष्ट करती है। इनमें से कुछ मेमोरी टी-सेल दशकों तक शरीर में बनी रहने में सक्षम होती हैं। साथ ही यह इम्युनिटी कभी-कभी जीवन भर रह सकती है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि दूसरी खुराक तक आपके पास इस प्रकार की सेल नहीं होंगी।
शरीर में ऐसे बढ़ती है एंटीबॉडी
वैक्सीन की दूसरी खुराक से प्रतिक्रिया के दूसरे भाग की शुरुआत होती है और मॉलिक्यूल रोगाणुओं के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करते हैं। एक बार जब कोई भी व्यक्ति वैक्सीन की दूसरी खुराक लगवा लेता है तो मेमोरी टी सेल की उच्च आवृति होने लगती है, साथ ही मेमोरी बी सेल का आकार भी बढ़ने लग जाता है। साथ ही उच्च गुणवत्ता वाली एंटीबॉडी भी बनती है। एक ही वैक्सीन की दूसरी खुराक लगाने पर बी सेल तेजी से विभाजित होती है। इसके कारण एंटीबॉडी की मात्रा में वृद्धि होती है। दूसरी खुराक बी सेल की परिपक्वता की प्रक्रिया की शुरुआत करती है, जो रोगाणु को बांधने के लिए सबसे बेहतर रिसेप्टर्स का चयन करती है। यह अस्थि मज्जा में होने के वक्त होता है, जहां श्वेत रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है। इसके बाद तिल्ली में विकसित होते हैं। इसका अर्थ है कि बाद में बी सेल की संख्या न केवल बहुत ज्यादा होती है, बल्कि उसके द्वारा बनाई गई एंटीबॉडी भी बेहतर लक्षित होती है। इस बीच, मेमोरी टी सेल भी तेजी से फैलती हैं। जिसने पहले ही बहुत से लोगों में गंभीर रूप से कोविड-19 महामारी विकसित होने से बचाया है।
एक खुराक से नहीं मिलती पूरी सुरक्षा
ब्रिटेन की सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन की दूसरी खुराक देने में 3 से 4 सप्ताह के अंतर की जगह 12 सप्ताह का अंतराल रखने का निर्णय लिया है। वहीं रूस एक खुराक वाली वैक्सीन के परीक्षण में जुटा है। दिसंबर 2020 में प्रकाशित आंकड़े के अनुसार, फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की पहली खुराक के बाद वह 52%, जबकि दूसरी खुराक के बाद यह 95% प्रभावी है। वहीं ऑक्सफोर्डएस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की पहली खुराक 64.1% और दूसरी खुराक 70.4% प्रभावी रही। वहीं पहली खुराक के बाद दूसरी आधी खुराक लेने वालों को 90% सुरक्षा मिली। मॉडर्ना की वैक्सीन पहली खुराक के बाद 80.2% और दूसरी खुराक के बाद 95.6 फीसद सुरक्षा प्रदान करती है।
काफी नहीं एक खुराक
प्री-क्लीनिकल ट्रायल के दौरान यह सामने आया था कि एक खुराक से पर्याप्त प्रतिरक्षा हासिल नहीं हुई। जबकि तीसरे चरण के ट्रायल में पहली खुराक की तुलना में दूसरी खुराक के बाद ज्यादा एंटीबॉडी और टी सेल बने। कई विशेषज्ञों का मानना है कि दूसरी खुराक को छोड़ना बड़ी गलती होगी।
प्रतिरक्षा विकसित होने में लगेगा वक्त
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिरक्षा हासिल करने में समय लगता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के एक हिस्से को हम जन्मजात प्रतिरक्षा कहते हैं, जो तुरंत प्रतिक्रिया देती है। हालांकि आमतौर पर यह बीमारी को अपने आप रोक नहीं सकती है और वैक्सीन से प्रभावित नहीं होती है। वैक्सीन को अधिक प्रतिरक्षा कोशिकाएं बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिनमें से कुछ बदले में एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं।