राजामोहन ने कहा कि चीन को पूर्वी लद्दाख और एशिया के अन्य हिस्सों जैसी गलत जगहों पर अपनी आक्रमकता दिखाने का अंजाम भुगतना पड़ेगा
रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सी. राजामोहन ने बुधवार को कहा कि चीन को पूर्वी लद्दाख और एशिया के अन्य हिस्सों जैसी गलत जगहों पर अपनी आक्रमकता दिखाने का अंजाम भुगतना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि चीन की दुस्साहसपूर्ण हरकतें उन पड़ोसी देशों में जवाबी राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया को जन्म दे सकती है जो वर्चस्व स्थापित करने की किसी कोशिश को स्वीकार नहीं करेंगे।
तीन दशकों के प्रयासों पर फिरा पानी
एशिया का राष्ट्रवादी स्वभाव नहीं भांप सका चीन
प्रो. राजामोहन ने कहा कि चीन गलत जगहों पर अपनी आक्रामकता दिखाने का अंजाम भुगतेगा। उसकी हरकतों से इन देशों में जवाबी राष्ट्रवादी प्रतिक्रियाएं शुरू हो सकती हैं। उन्होंने सिंगापुर से फोन पर दिए एक साक्षात्कार में कहा, हम यह जल्द ही देखेंगे कि शेष विश्व किसी एक शक्ति के वर्चस्व को कहीं से भी स्वीकार नहीं करेगा। मुझे लगता है कि चीन ने एशिया में राष्ट्रवाद के स्वभाव का बुनियादी रूप से गलत आकलन किया है।
देशों को अमेरिका के नजदीक ला रहा चीन
एशिया में भारत समेत ज्यादातर देश राष्ट्रवादी हैं। ऐसे में किसी एक राष्ट्र की इच्छा को दूसरों पर थोपे जाने की कोशिश का गलत नतीजा हो सकता है। ये देश एशिया में किसी नई शक्ति के वर्चस्व को स्वीकार नहीं करने वाले। रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ राजामोहन सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी में एशियाई अध्ययन संस्थान के निदेशक के तौर पर सेवा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन अपने आक्रामक व्यवहार से विभिन्न देशों को अमेरिका के नजदीक कर रहा है।
हरकतों की कीमत चुकाएगा चीन
प्रो. राजामोहन ने कहा कि जो देश पहले अमेरिका के पास जाने में हिचकते थे अब वे चीन के आक्रामक रवैये से रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग समेत मजबूत संबंध बनाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इस तरह चीन की हरकतों का असर उसके लिए ही नुकसानदेह है। चीन में भी ऐसे लोग हैं जो इसे गलत रूप में देख रहे होंगे। चीन को गैर जरूरी हरकतों की कीमत चुकानी पड़ेगी।
भारत से होने वाले फायदे गंवा चुका है ड्रैगन
प्रो. ने कहा कि गलवान घाटी में झड़प और पूर्वी लद्दाख में चीन की दुस्साहसपूर्ण गतिविधियों का भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने की तीन दशकों की कोशिशों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। चीन भले ही थोड़ी बहुत जमीन हथिया ले लेकिन उसने भारतीय जनमानस में चीन के प्रति धीरे-धीरे बन रही सद्भावना और भारत के साथ आर्थिक सहयोग के व्यापक फायदों को गंवा दिया है।
अपने नेताओं से सबक ले चीन
राजामोहन ने कहा कि भारतीय सीमा पर चीन का व्यवहार भारत के कुछ लोगों के लिए यह आश्चर्यजनक हो लेकिन यह उसका सामान्य रवैया लगता है जो अन्य स्थानों पर भी दिखा है। डेंग शियोपिंग के नेतृत्व में चीन ने 1980 और 1990 के दशक में क्षेत्रीय विवादों को ठंडे बस्ते में रख क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया था। डेंग का मानना था कि सीमांत क्षेत्रों में शांति होनी चाहिए और भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश भी डेंग के इस फार्मूले पर आधारित थी कि सीमाओं पर शांति कायम रखी जाए।
शांति का रुख छोड़ रहे चिनफिंग
प्रो. ने कहा कि हमने मौजूदा राष्ट्रपति शी चिनफिंग के नेतृत्व में पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि वह शांति का रुख छोड़ रहे हैं और एकतरफा तरीके से दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर में चीन के आधिपत्य का दावा कर रहे हैं। साथ ही, हांगकांग और ताइवान तथा भारत के मामले में भी कहीं अधिक शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता सिर्फ भारत के लिए नहीं है, बल्कि ऐसा लगता है कि यह उस रवैये का हिस्सा है जिसके तहत वह क्षेत्रीय विवादों में खुद को अजीबोगरीब तरीके से पेश करता है।
5जी पर देशों के रवैये से सीखे चीन
उन्होंने कहा, यह चीन के व्यापक रूपांतरण का हिस्सा है जो शी के नेतृत्व में हो रहा है। यह पूछे जाने पर कि क्या चीन विश्व-व्यवस्था बदलने की कोशिश कर रहा है, प्रो. राजामोहन ने कहा कि चीन खुद को अमेरिका के खिलाफ स्थापित कर रहा है। वह खुद को अमेरिका से आगे निकलने वाले देश के तौर पर देखता है। शायद चीन ने यह आकलन किया है कि अन्य देश प्रतिक्रिया नहीं करेंगे या उनके लिए प्रतिरोध करना संभव नहीं है लेकिन हम 5जी के मामले में देख चुके हैं।