देहरादून में आमजन लाचार, फुटपाथ पर सजा है बाजार
देहरादून। कहने को तो सरकारी मशीनरी दावा करती रहती हैं कि राजधानी में फुटपाथ हैं और सड़क साफ है, लेकिन हकीकत इससे उलट है। यहां फुटपाथ तो दूर, सड़क तक नजर नहीं आती। लोगों को पैदल चलने लायक जगह भी नहीं मिल पा रही है। शहर में हर तरफ अतिक्रमण व अवैध कब्जों की भरमार है। फुटपाथ पर या तो दुकानदार का कब्जा है या फिर फड़-ठेली-रेहड़ी वालों का। कहीं तांत्रिक की दुकान सजी है तो कहीं फुटपाथ भिखारियों के अड्डे बने हुए हैं। इतना ही नहीं राजपुर रोड के फुटपाथ पर तो गाडिय़ां भी पार्क की जा रही हैं। ऐसे में शहर में वाहनों का जाम लगना लाजमी है।
अप्रैल 2014 में हाईकोर्ट ने संज्ञान लेकर फुटपाथ खाली कराने को बाकायदा कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की थी। सरकार ने उस समय कुछ जगह इच्छाशक्ति दिखाते हुए कार्रवाई की थी, लेकिन समय के साथ फुटपाथों पर फिर कब्जे हो गए। वर्ष 2017 में शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने दून शहर में कमान संभालते हुए इसे अतिक्रमण मुक्त कराने की कसरत शुरू की, मगर यह कसरत अधिकारियों की हीलाहवाली की भेंट चढ़ गई। यही नहीं उनके ड्रीम प्रोजेक्ट आइएसबीटी से घंटाघर तक मॉडल रोड के फुटपाथ आज फिर अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। मुख्य बाजारों में शुमार पलटन बाजार और धामावाला समेत मोती बाजार, डिस्पेंसरी रोड, चकराता रोड, राजपुर रोड, सहारनपुर रोड, प्रिंस चौक, आढ़त बाजार एवं गांधी रोड, कांवली रोड, झंडा बाजार आदि के हालात देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि अतिक्रमण को अनदेखा करने में किस तरह सरकारी मशीनरी आगे है।
फुटपाथों का होता है सौदा
मेन बाजार में बने फुटपाथों का व्यापारी सौदा करते हैं। दुकान के बाहर फड़-रेहड़ी लगाने का बाकायदा पैसा वसूला जाता है। दुकानदार ही नहीं सरकारी मशीनरी पर भी वसूली के आरोप लगते रहे हैं।
सड़क पर चल रहे वर्कशॉप
शहर में यूं तो मैकेनिक की दुकानें संचालित करने के लिए प्रशासन ने ट्रांसपोर्टनगर में जगह दी हुई है, लेकिन इसके बावजूद पूरे शहर में धड़ल्ले से सड़क व फुटपाथ पर खराब वाहनों की मरम्मत की जा रही है। राजपुर रोड हो या चकराता रोड। कलेक्ट्रेट के सामने, कचहरी के पीछे, सहारनपुर रोड, ईसी रोड समेत कनक चौक तक यही नजारा दिखाई देता है। खराब वाहनों के चलते दुर्घटनाओं की आशंका भी बनी रहती है। प्रिंस चौक, त्यागी रोड, दिलाराम बाजार, नेशविला रोड, सहारनपुर रोड, गांधी रोड, हरिद्वार रोड, कांवली रोड के हालात भी किसी से छिपे नहीं हैं। सभी जगह धड़ल्ले से बीच सड़क में वाहन को खड़ा कर मरम्मत की जाती है। अगर कोई इसका विरोध कर दे तो मैकेनिक हाथापाई पर उतारू हो जाते हैं।
इनामुल्ला बिल्डिंग पर बुरा हाल
शहर की सबसे व्यस्ततम सड़क गांधी रोड पर इनामुल्ला बिल्डिंग के पास आधी सड़क खराब वाहनों से घिरी रहती है। गत वर्ष ही अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत यहां सड़क पर संचालित हो रही दुकानों को तोड़ा गया गया था, लेकिन हालात फिर से पहले जैसे हो गए।
अतिक्रमण के चलते शहर में बुजुर्गों ने छोड़ी मॉर्निंग वॉक
33 साल से देहरादून में रह रहे सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर केजी बहल अब शाम की सैर पर नहीं जाते। वह कहते हैं ‘सुबह जल्दी उठकर मॉर्निंग वॉक कर लेता हूं। इसके बाद ट्रैफिक इतना होता है कि टहलना संभव नहीं है। शाम के वक्त तो सैर के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता।’ राजधानी बनने के बाद यही है दून की हकीकत। बीते 17 साल में जनसंख्या में 33 फीसद वृद्धि हुई और सड़कों की चौड़ाई 10 फीसद। इस दौरान वाहनों की संख्या में तीन सौ फीसद का इजाफा हुआ। जाहिर है इस सब में पैदल चलने वाले बहुत पीछे छूट गए। जिम्मेदार तंत्र ने उनके बारे में नहीं सोचा। यही वजह है कि फुटपाथ गायब हो गए अथवा उन पर दुकानें सज गईं।
दून के पॉश इलाके लक्ष्मी रोड निवासी ब्रिगेडियर बहल सवाल उठाते हैं कि ‘सरकार का ध्यान सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने पर तो रहा, लेकिन किसी ने फुटपाथ के बारे में नहीं सोचा।’ राजधानी बनने के बाद दून में वाहनों का दबाव किस कदर बढ़ा है, आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। राजपुर रोड पर व्यस्ततम समय में प्रतिघंटा पांच हजार वाहन गुजरते हैं तो चकराता रोड से 4500, जबकि हरिद्वार रोड से करीब चार हजार। वन अनुसंधान संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक एनएस गुरुराजन वर्ष 1974 में दून में बस गए थे। राजपुर रोड पर उन्होंने अपना घर बनाया। पुराने दून को याद करते हुए बताते हैं ‘तब राजपुर रोड पर फुटपाथ कच्चा होता था और वृक्षों की पूरी शृंखला थी। आराम से लोग पैदल आते जाते थे। आज की तरह का ट्रैफिक नहीं था।’ वह कहते हैं अब सुबह की सैर ही दूभर हो गई, शाम की तो बात ही छोड़िए।
सुकून के शहर से मेट्रो सिटी में तब्दील हो रहा देहरादून कभी रिटायर्ड लोगों की पहली पसंद रहा, लेकिन यह खासियत अब बीते दिनों की बात बन चुकी है। सबसे पुराने बाजार पलटन बाजार को ही देखिए, दुकानें फुटपाथ लील गईं और संकरी सड़क पर वाहन पार्क हो रहे हैं। ऐसे में कोई पैदल चले भी तो कैसे। हालात यह हैं कि अभिभावकों के बिना बच्चे पैदल स्कूल नहीं जा सकते। हर वक्त दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है।