उत्तरप्रदेश

शामली के एक मन्दिर में पूजते है,गदर के सूरमा

शामली – शामली का एक गांव ऐसा भी है। जहां कई वर्षो से बने स्वंत्रता सैनानियो का मंदिर है। जहां शहीदो के इस मंदिर मे उनकी सिर कटी कई प्रतिमाऐ लगी हुयी है। वही गांव के लोग भले ही शहीदो की चिताओ पर मेले ना लगते हो लेकिन यहां पर गांव के इस मंदिर को देवतुल्य सम्मान दिया गया है। बताया जाता है। इस मंदिर से कई कहानियां जुडी हुई है। ओर ना ही आज तक इस मंदिर की स्थापना का किसी को भी पता है। बस कुछ गांव के बुर्जुग लोगो को भी उनके बुर्जुगो से इस बात की जानकारी मिली है कि यह मंदिर 1857 मे लडाई मे शामिल हुये स्वत्रंता सैनानियो की है। उस समय लोगो के हाथ व पैर काट दिये जाते थे।
दरअसल बात शामली के गांव खेडी करमू की है। जहां 1857 मे गदर के सूरमाओ का एक मदिर स्थापित है। उस मंदिर मे किसी की कोई भी प्रतिमा नही है। मंदिर के चारो ओर सिर व हाथ काटे हुई प्रतिमाऐ बनी हुयी है। वही गांव के किसी भी ग्रामीण को इसकी स्थापना कब हुई किसी को नही पता है। खेडीकरमू जिले का पुराना जाट बहुल गांव है। आजादी के लिये 1857 मे हुये गदर  मे इस गांव के कई वीर सपूतो ने अपना बलिदान दिया है। वही मुगलो के साथ युद्व हो या आजादी की जंग इस गांव ने हमेशा बालिदान दिया है। अंग्रेजो की लडाई मे भी इस गांव के सैकडो लोगो शहीद हुए है। वही यहां के बुर्जुगो का कहना है। कि गदर की लडाई के समय अंग्रेजो ने यहां पर कत्ल-ए-आम मचाया था। जिसमे सैकडो लोगो ने अपना बालिदान दे दिया था।  जिन लोगो ने अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश की तो उनके सिर ओर हाथ, पैर कटवा दिये थे। वही ब्रिटिश सेना ने सब कुछ उजाड दिया था । वही जब गांव के जो लोग चले गये थे ओर वापस आये तो उनके इस गांव मे लाशो के ढेर लगे हुये थे। वही आजादी के दीवानो ने गांव से लगभग 3 किमी0 दूर जाकर उन शहीदो का अंतिम संस्कार किया गया। वही कुछ लोगो का मानना है कि वे अब भी यहां पर हमारी रक्षा कर रहे है। व दूसरी डेढ सौ वर्ष से भी पुराने इस मंदिर को लेकर प्रशासन का कोई ध्यान नही है। वही गांव के व दुर-दराज के लोगो त्यौहार पर आकर यहां पर पूजा-पाठ भी करते है।
बुजुर्ग ग्रामीण कुपाल सिंह ने बताया कि गदर के जमाने में अग्रेंजो ने स्वतंत्रासेनानियो के किसी के हाथ काट दिये किसी के पैर और किसी की गर्दन उसके बाद हमारे पूवजो ने उनकी याद में यह मन्दिर बनवाया है। और हम होली दिवाली पर मन्दिर में शहीद हुए पूरखो की याद में हवन पूजा करतें है। और शादी विवाह में भी नई दुल्हन जब घर आती है। पहले मन्दिर में पूजा करती है। उसके बाद ही घर में प्रवेश करती है।
वही इतिहासकार मुनव्वरजंग का कहना है कि अब बात तो यह है कि इतिहास मे शामली मे शहीदो के मंदिर का कोई उल्लेख नही मिला है। पर इस मंदिर पर बनी दीवारो पर सिर कटी मूर्तियो का किसी गदर  की ओर इशारा जरूर करती है।

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