राममंदिर मामले में मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय में बुधवार को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता को लेकर अहम सुनवाई हुई, जिसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। माना जा रहा है कि अदालत आज ही मध्यस्थता के मुद्दे पर अपना फैसला सुना सकती है। सुनवाई की शुरूआत में हिंदू महासभा ने कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखा और मध्यस्थता के प्रस्ताव का विरोध किया। साथ ही कहा कि जब तक वह सभी को सुन नहीं लेते वह मध्यस्थता के लिए कैसे हामी भर दें। हालांकि मुस्लिम पक्षकार मध्यस्थता के लिए तैयार हैं। हिन्दू महासभा के बयान के बाद न्यायाधीश बोबड़े ने कहा कि मैं हैरान हूं कि विकल्प आजमाए बिना मध्यस्थता को खारिज कैसे किया जा सकता है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि अतीत पर हमारा किसी तरह का नियंत्रण नहीं है लेकिन हम बेहतर भविष्य के लिए कोशिशें कर सकते हैं।
वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा यह महज दो पक्षों का मुद्दा नहीं है बल्कि यह लाखों-करोड़ो लोगों की आस्था का विषय है। इसी बीच मुस्लिमों का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि अगर आप मध्यस्थता का फैसला लेते हैं तो वह सभी को मान्य होगा। इसी के साथ उन्होंने कहा कि मध्यस्थता बंद कमरे में हो ताकि बातें लीक न हों। इसी बीच आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
शीर्ष अदालत ने गत 26 फरवरी को कहा था कि वह छह मार्च को आदेश देगा कि मामले को अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए या नहीं। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने विभिन्न पक्षों से मध्यस्थता के जरिये इस दशकों पुराने विवाद का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान किये जाने की संभावना तलाशने को कहा था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि यदि इस विवाद का आपसी सहमति के आधार पर समाधान खोजने की एक प्रतिशत भी संभावना हो तो संबंधित पक्षकारों को मध्यस्थता का रास्ता अपनाना चाहिए।
इस विवाद का मध्यस्थता के जरिये समाधान खोजने का सुझाव पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एस ए बोबडे ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई के दौरान दिया था। न्यायमूर्ति बोबडे ने यह सुझाव उस वक्त दिया था जब इस विवाद के दोनों हिन्दू और मुस्लिम पक्षकार उप्र सरकार द्वारा अनुवाद कराने के बाद शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में दाखिल दस्तावेजों की सत्यता को लेकर उलझ रहे थे। पीठ ने कहा था, ‘हम इस बारे में (मध्यस्थता) गंभीरता से सोच रहे हैं। आप सभी (पक्षकार) ने यह शब्द प्रयोग किया है कि यह मामला परस्पर विरोधी नहीं है। हम मध्यस्थता के लिये एक अवसर देना चाहते हैं, चाहें इसकी एक प्रतिशत ही संभावना हो।’