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प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस को UP में कोई फायदा होता नहीं दिख रहा
घोड़ों की रेस में लंगड़े घोड़े पर कोई दांव नहीं लगाता है, लेकिन बात जब सियासी ‘रेस’ की होती है तो इसमें ‘रेस’ के शौकीनों द्वारा अपने मजबूत और विपक्ष के ‘लंगड़े घोड़ों’ पर दांव लगाना फायदे का सौदा माना जाता है। आम चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश की सियासत में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। यूपी के राजनैतिक परिदृश्य पर नजर दौड़ाई जाए तो यहां भारतीय जनता पार्टी की समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन से कांटे की टक्कर होती नजर आ रही है। इस टक्कर में कांग्रेस तीसरा कोण बनना चाहती है। कांग्रेस को कम से कम यूपी में तो चुनावी रेस का कमजोर/लंगड़ा घोड़ा माना ही जा रहा है। प्रियंका गांधी वाड्रा की इंट्री के बाद भी कांग्रेस हवा का रूख ज्यादा अपनी तरफ नहीं मोड़ पाई है, लेकिन भाजपा है कि वह अपने मुकाबले में सपा−बसपा की जगह कांग्रेस को ही खड़ा होता दिखाने की हर संभव कोशिश में लगे हैं।
अमेठी में बात भाजपा बनाम कांग्रेस की करी जाए तो 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी को 66.18 प्रतिशत और भाजपा को 9.40 प्रतिशत मत मिले थे। इसी तरह से 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को 71.78 और भाजपा को 5.81 प्रतिशत वोट पड़े थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां की चुनावी तस्वीर काफी बदली−बदली नजर आई। हालांकि जीत राहुल गांधी को ही मिली, लेकिन भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने राहुल को तगड़ी टक्कर दी। राहुल को 46.71 प्रतिशत और स्मृति को 34.38 वोट मिले थे। बीजेपी के वोट का प्रतिशत क्या बढ़ा भाजपा नेताओं की उम्मीदें भी परवान चढ़ने लगी। वैसे, इतिहास गवाह है कि अमेठी कांग्रेस के लिए अजेय नहीं रहा है। 1998 के चुनाव में संजय सिंह ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्होंने राजीव गांधी के करीबी को पटखनी दी थी। इससे पूर्व 1967 में पहली बार यह सीट कांग्रेस के हिस्से से बाहर गई। तब जनता पार्टी के टिकट पर रविंद्र प्रताप सिंह जीते थे। यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच चुनाव के पहले की मनोवैज्ञानिक लड़ाई चल रही है, जिसे बीजेपी जीती तो उसे लाभ मिलेगा ही, लेकिन अगर कांग्रेस हारी तो सत्ता पाने की उसकी लालसा को गहरा झटका लग सकता है। अमेठी कांग्रेस के लिए सम्मान का मामला है, तो बीजेपी के लिए कांग्रेस को उसके गढ़ में ही रोके रखने का एक फार्मूला। पिछले लोकसभा चुनाव में भी राहुल के बहाने पूरी कांग्रेस को असहज करने के लिए बीजेपी ने अमेठी पर पूरा जोर लगा दिया था। तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और उन्होंने यहां रैली भी की थी। मोदी के पक्ष में बनी हवा और यहां से चुनाव लड़ रहीं स्मृति ईरानी की मेहनत ने राहुल गांधी को तगड़ा झटका दिया था। 2009 के मुकाबले 2014 में राहुल के वोट प्रतिशत में तकरीबन 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। इस बार वह कांग्रेस अध्यक्ष हैं। ऐसे में उन पर सीधे हमले का मतलब साफ है कि राहुल को पूरे देश में कांग्रेस के लिए वोट मांगने के साथ ही अपना घर भी बचाने में जुटना होगा।